Monday, May 29, 2023
Home बस्ती और आसपास कानवेन्ट स्कूलों को मात दे रहा है मुसहा प्रथम का सरकारी स्कूल

कानवेन्ट स्कूलों को मात दे रहा है मुसहा प्रथम का सरकारी स्कूल

सत्य, निष्ठा एवं इमानदारी को हर युग में सम्मान मिलता आया है। इसकी बुनियाद पर किया गया कार्य सच्ची राष्ट्र सेवा है। दुनिया में तमाम लोग हैं जो जिम्मेदारियों से भागते हैं, तिरस्कार सहते हैं और जीवन में दुश्वारियां झेलते रहते हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे हैं जो आगे आकर जिम्मेदारियां लेते हैं, बखूबी निभाते हैं, अपनी योग्यता क्षमता का एक एक कतरा अपने काम को बेहतर ढंग से करने में लगा देते हैं और दुनियां में सबसे अलग दिखते हैं।

आज हम बात कर रहे हैं एक सरकारी स्कूल की जो कानवेन्ट स्कूलों को हर मायने में चुनौती दे रहा है। यह बस्ती जनपद के गौर विकास खण्ड में मुसहा प्रथम गांव में स्थित अंग्रेजी माध्यम का प्राथमिक विद्यालय है। प्रधानाध्यापक समेत 10 अध्यापकों, एक माली और 5 रसोइयों ने मिलकर विद्यालय को ऐसा सजाया है कि हजारों में भी एक ऐसा विद्यालय देखने को नही मिलेगा। यहां बेहद सुन्दर व दुर्लभ प्रजाति के फूलों और पौधों से सजी आकर्षक बागवानी हर किसी को आकर्षित कर लेती है। सुन्दरता ऐसी की नजर टिकी रह जाये। पौधों को पानी देने की व्यवस्था, बच्चों के लिये पेयजल, मनमोहक वाल पेण्टिंग, घर जैसा मिड डे मील, अनुशासित छात्र छात्रायें, संस्कारित, समर्पित अध्यापक इस विद्यालय को अलग पहचान दिला रहे हैं।

कुशल मार्गदर्शन
साल 2010 से यहां रामसजन यादव प्रधानाध्यापक का दायित्व संभाल रहे हैं। इनके कड़ी मेहनत, निरन्तरता, समर्पण, दूर की सोच, अनुशासन, स्टाफ के साथ तालमेल, निजी मदों से विद्यालय को बेहद खास बनाने की जिद ने 12 साल के कार्यकाल में विद्यालय को नई पहचान दिलाया। इन्होने आम जनमानस के इस भ्रम को तोड़ा है कि सरकारी स्कूलों में बेहतर पढ़ाई और व्यवस्था नही होती। इलाके के लोग इनकी निष्ठा के कायल हैं। इमरजेंसी छोड़कर ये रविवार को भी नियमित विद्यालय जाते हैं। इनका कहना है कि अपने हाथों से जिस विद्यालय को सजाया संवारा है उसे रोज एक बार देखने के बाद सुखद अनुभूति होती है। यही अनुभूति उन्हे नित नया करने की प्रेरणा देती है।

व्यवस्थित कक्ष
विद्यालय में कुल 15 कमरे हैं। कम्प्यूटर कक्ष, प्रधानाध्यापक कक्ष, अतिथि कक्ष, संगीत कक्ष आदि की व्यवस्था और साज सज्जा देखने लायक है। शौचालय, रसोई, पेयजल किसी व्यवस्था पर कहीं भी उंगली खड़ा करने लायक नही है। हमारी उपस्थिति में संगीत कक्ष में बच्चों ने आधे घण्टे के भीतर एक से एक मनमोहक प्रस्तुति दी। बच्चे ऐसे तैयार थे कि ‘तनिक हवा से बाग हिली लेकर चेतक उड़ जाता था’ मसलन बच्चों के लिये इशारा ही काफी था, तुरन्त उनकी सांस्कृतिक प्रतिभायें सामने आ गयीं।

निजी स्तर पर शिक्षकों की व्यवस्था
प्रायः सरकारी नौकरी करने वालों की मंशा होती है कि ऊपर से भी कुछ मिला जाता तो परिवार चलाना आसान हो जाता। किन्तु यहां के प्रधानाध्यापक धन्य हैं, वे अपनी तनख्वाह से भी लगाने को तैयार रहते हैं। उन्होने दो शिक्षिकाओं और एक माली को निजी स्तर पर नियुक्त किया है, जिससे कक्षायें खाली न जायें और स्कूल कैम्पस का साज श्रंगार हमेशा बना रहे। तनख्वाह मिलने पर अपनी जेब से वे इन्हे तनख्वाह देते हैं। ये भी पूरी लगन से अपनी जिम्मेदारियां निष्ठापूर्वक निभाते हुये प्रधानाध्यापक को हमेशा खुश रखते हैं।

बच्चों की संख्या
स्कूल में इस समय 650 बच्चे पढ़ रहे हैं। इमरजेंसी छोड़कर सभी बच्चे उपस्थित रहते हैं। हमने खुद 3-4 कक्षाओं में जाकर 15-15 मिनट इन्हे पढ़ाया। यहां के अध्यापकों ने इन्हे केवल किताबी ज्ञान नहीं दिया है। अनेकों स्कूलों में बच्चों की कक्षा में कोई अपरिचित पहुंच जाये तो ऐसा लगता है जैसे उन्हे सांप सूंघ गया हो। लेकिन यहां के बच्चे हाजिर जवाब। कुछ भी पूछा जो भी समझ में आया बड़े ही आत्मविश्वास से जवाब मिला। नैतिक शिक्षा, अनुशासन सब मामलों में बच्चों की जितनी तारीफ की जाये कम है।

घर की तरह भोजन
यहां बच्चों को एमडीएम के तहत घर की तरह स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन मिलता है। 5 रसोइया मिलकर 650 बच्चों का भोजन तैयार करते हैं, कोई भी काम को बोझ नही समझता। बच्चों से भोजन के बारे में पूछा गया तो जवाब मिला जैसा घर का भोजन रहता है उसी तरह यहां भी। समय समय पर अन्य पौष्टिक चीजें भी उपजब्ध कराई जाती हैं।

प्रशासन की नजर क्यों नहीं ?
अच्छे और बुरे में फर्क होना चाहिये। अच्छा करने वालों को प्रोत्साहन मिले इसके लिये समय समय पर उन्हे इसका इनाम मिलना चाहिये। वरना न अच्छे बुरे में फर्क रह जायेगा और न ही कोई बेहतर करने के बारे में सोचेगा। विडम्बना ये है कि सत्य, निष्ठा, इमानदारी ही सराहना के लिये पर्याप्त नही होती, चापलूसी भी एक बड़ी योग्यता मानी जाती है। यह गुण न होने पर अच्छा करने वाला हाशिये तक सिमटकर रह जाता है।

संतुष्ट हैं स्टाफ
इतना सब करने के बावजूद यहां के स्टाफ व प्रधानाध्यापक संतुष्ट हैं। उनका कहना है सरकार हमे शैक्षिक बदलाव के लिये तनख्वाह देती है, हम अपनी जिम्मेदारी निष्ठापूर्वक निभा रहे हैं। अभिभावकों और विद्यालय पर आने वाले अतिथियों से मिल रहा सम्मान उनका पारितोषिक है। प्रधानाध्यापक रामसजन यादव कहते हैं हमने इलाके में जन विश्वास अर्जित किया है। कठिन मेहनत और स्टाफ के सहयोग से कानवेन्ट स्कूलों का भ्रम तोड़ा है। पहले स्कूल के संसाधन गायब होते थे या नष्ट कर दिये जाते थे लेकिन जबसे गांव के लोग मालिक की भूमिका में आगे आकर जिम्मेदारी संभाले हैं स्कूल की दशा और दिशा सुधर गयी है।

पाकीजा सिद्धीकी को जानिये
यहां तैनात सहायक अध्यापकों में एक पाकीजा सिद्धीकी हैं। ये गोरखपुर से बगैर लेट किये रोज आती हैं। समय पर विद्यालय पहुंचने के लिये ऑटो रिजर्ब करके जाती हैं। इनकी निष्ठा, समर्पण और काम के प्रति लगन बिरले ही लोगों में देखने को मिलती है। दशरथनाथ पाण्डेय, जगदीश कुमार, अखिलेश त्रिपाठी, शिक्षामित्र विमला देवी, विजय कुमार, शंकराचार्य, प्रेरणा साथी मंजू देवी एवं राजपति आदि सभी स्टाफ अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और बगैर किसी दबाव और तनाव के उन्हे निभाते भी हैं।

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