बस्ती। वरिष्ठ कवि डॉ. रामकृष्ण लाल जगमग कृत काव्य संग्रह ‘खुशियों की गौरैया’ और ‘चाशनी’ के छठे संस्करण का लोकार्पण प्रेस क्लब सभागार में वरिष्ठ साहित्यकारों, कवियों और सुधी श्रोताओं की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामनरेश सिंह मंजुल ने कहा कि जगमग का रचना संसार आम आदमी के जीवन संघर्षो की यात्रा के कई पड़ावों से गुजरते हुये अब आध्यात्म की ओर विकसित हो रहा है।
वे देश के श्रेष्ठ कवियों में हैं और बस्ती के साहित्य परम्परा को देश विदेश में परिचित करा रहे हैं। कहा कि लोकप्रिय हो चुकी चाशनी की तरह खुशियों की गौरिया को भी साहित्य के क्षेत्र में मान मिलेगा इसमें संदेह नहीं। मुख्य अतिथि सामाजिक कार्यकर्ता राना दिनेश प्रताप सिंह ने कहा कि डॉ. रामकृष्ण लाल जगमग बहादुरपुर विकास खण्ड के कैथवलिया की माटी से जुड़े हैं और यह जनपद का सौभाग्य है कि वे बस्ती की साहित्यिक, सांस्कृतिक परम्परा को गौरवान्वित कर रहे हैं। समीक्षक दिनेश चन्द्र पाण्डेय ने कहा कि डॉ. जगमग के तीखे व्यंग्य जहां लोक भावना को शब्द देते हैं वहीं उनका रचना संसार जीवन दृष्टि को व्यापक परिवेश से जोड़ता है।
संयोजक विनोद कुमार उपाध्याय ने कहा कि डा. जगमग जीवट कवि है और कठिन परिवेश में भी खुशियों की गौरैया को जीवन्त करते हैं। नई पीढ़ी के लिये वे एक जीवन्त उदाहरण हैं। वरिष्ठ साहित्यकार सत्येन्द्रनाथ मतवाला ने कहा कि काव्य क्षेत्र में डा. जगमग जैसा समर्पण कम ही लोगों में दिखता है। प्रदीप चन्द्र पाण्डेय ने कहा कि डा. जगमग बस्ती में सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की परम्परा को और प्रतिष्ठा दे रहे हैं। कार्यक्रम का संचालन करते हुये वरिष्ठ साहित्यकार ज्ञानेन्द्र द्विवेदी ‘दीपक’ ने कहा कि डा. जगमग ने लोकप्रियता के क्षितिज को स्पर्श किया है।
डा. सत्यव्रत, कृष्णदेव मिश्र, पं. चन्द्रबली मिश्र, सुरेन्द्र मोहन वर्मा, दिनेश कुमार श्रीवास्तव, नरेन्द्र बहादुर सिंह, हरीराम बंसल, बी. के. मिश्र, बटुकनाथ शुक्ल, विनय कुमार श्रीवास्तव आदि ने ‘खुशियों की गौरैया’ और ‘चाशनी’ के विविध रूपों पर प्रकाश डाला। डा. रामकृष्ण लाल जगमग ने कहा कि जीवन में जब-जब संघर्षों और वेदना की पराकाष्ठा से गुजरा साहित्य उनके लिये साहस बनकर सामने आ गया, यही उनकी पूंजी है। राष्ट्रीय कवियत्री डा. अंजना कुमार, डा. सतीश आर्य, विनोद कुमार उपाध्याय, डा. राजेन्द्र सिंह राही डा. बी.के. वर्मा, सत्येन्द्रनाथ मतवाला, सागर गोरखपुरी, जगदम्बा प्रसाद मावुक, अशद बस्तवी, पंकज सोनी, डा. अफजल हुसेन अफजल डा. अजीत राज, ने रचनाओं के माध्यम से वातावरण को जीवन्त किया।