बस्ती। दुबौलिया थाना क्षेत्र के राष्ट्रीय कृषक इण्टर कालेज सूदीपुर रघूराजनगर में एक व्यक्ति की फर्जी नियुक्ति का मामला चर्चा में हैं। आरटीआई से हुये खुलासे से महकमे के अफसर जहां हैरान हैं वहीं आरोपी अपनी नौकरी बचाने के लिये अफसरों को खुश करने में जुटा है। इसी बीच जिला विद्यालय निरीक्षक डीएस यादव पर सजातीय आरोपी को बचाने के आरोप भी लग रहे हैं।
सूदीपुर गांव के सुशील कुमार सिंह ने जिला विद्यालय निरीक्षक, जिलाधिकारी समेत शासन प्रशासन को मामले की विस्तृत जानकारी देते हुये तत्काल कार्यवाही की मांग किया है। शिकायतकर्ता का कहना है कि दुबौलिया थाना क्षेत्र के बरगदिया निवासी रामसनेही यादव ने फरवरी 1999 में मृतक आश्रित पर अनुचर की नौकरी हासिल की। उस वक्त रामसनेही यादव ने 8 वीं कक्षा की जाली मार्कशीट प्रस्तुत की जिसमें उसकी जन्मतिथि 01 जनवरी 1980 अंकित है। जबकि उस वक्त वह राष्ट्रीय कृषक इण्टर कालेज सूदीपुर से ही संस्थागत छात्र के रूप में हाईस्कूल पास था, किन्तु हाईस्कूल के अंकपत्र (अनुक्रमांक 1046249) में उसकी जन्मतिथि 01 नवम्बर 1981 है।
इतना ही नही वर्ष 2004 में रामसनेही ने यूपी बोर्ड अनुक्रमांक 2716307 से विवेकानंद इण्टर कालेज दुबौलिया से संस्थागत छात्र के रूप में हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण किया जिसमें उसकी जन्मतिथि 01 जनवरी 1980 है। इसी को आधार बनाकर फिर 2006 में इण्टर पास कर लिया। बेहद चालाकी से उसने हाईस्कूल के अंकपत्र को नियुक्ति के समय छिपा लिया क्योंकि इसके अनुसार पर वह नाबालिग था और नौकरी पाने के अयोग्य था। कक्षा 8 की जाली मार्कशीट प्रस्तुत कर रामसनेही ने नौकरी प्राप्त कर लिया जबकि यह पूरी कूटरचना कालेज के प्रबंध तंत्र के सज्ञान में थी।
झूठ को सच साबित करने और अपनी नौकरी पक्की करने के इरादे से रामसनेही यादव ने कक्षा 8 के अंकपत्र पर अंकित जन्मतिथि दर्शाते हुये दूसरी बार हाईस्कूल प्राइवेट पास किया। इसके बाद इसी जन्मतिथि के आधार पर इण्टर भी पास कर लिया। इस बीच इन्ही अंकपत्रों के आधार पर कालेज में उसने लिपिक के पद पर प्रोन्नति भी हासिल की और 2016 से अब तक लिपिक की तनख्वाह लेता रहा। शिकायतकर्ता सुशील कुमार सिंह मामले को लेकर लोकायुक्त तक पहुंच गये। जांच शुरू हुई तो माध्यमिक शिक्षा परिषद के क्षेत्रीय कार्यालय ने 2004 में अनुक्रमांक 2716307 को 21 फरवरी 2022 को निरस्त कर दिया।
हाईस्कूल की मार्कशीट निरस्त होने के बाद इण्टर की स्वाभाविक रूप से निरस्त हो गईं। इससे पहले हाईस्कूल की परीक्षा जो रामसनेही ने उत्तीर्ण की उसमें जन्मतिथि 01 नवम्बर 1981 है जिससे वह नियुक्ति के समय नाबालिग था। जिला विद्यालय निरीक्षक ने 22 अप्रैल 2022 की अपनी आख्या में रामसनेही यादव द्वारा की गई कूटरचना की पुष्टि की है। बावजूद इसके कार्यवाही शून्य है। अब विश्वस्त सूत्रों से पता चल रहा है कि रामसनेही यादव की नोकरी बचाने और एसके द्वारा की गई कूटरचना पर परदा डालने में पूरा महकमा जुट गया है।
सवाल ये उठता है कि बोर्ड के द्वारा बनाई मार्कशीट अधिकारियों की नजर में फर्जी हो गई और स्थानीय स्तर पर बनी कक्षा 8 की मार्कशीट पक्का दस्तावेज हो गया। उपरोक्त संदर्भ में देखा जाये तो रामसनेही की कूटरचना स्पष्ट है। अनुचर पद से प्रोन्नति पाने के लिये उसने कूटरचना का सहारा लिया। जानकारों का कहना है कि इस कूटरचना के लिये पहले विभागीय जिम्मेदारों को रामसनेही यादव के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराना चाहिये और जांचोपरान्त प्रमोशन के लिये कूटरचना किया जाना प्रमाणित होने पर 2016 से अब तक प्राप्त की गई लिपिक संवर्ग के तनख्वाह की रिकवरी कराई जानी चाहिये।
प्रबंधक ने क्या कहा
इस मामले में कालेज के प्रबंधक हरिश्चन्द्र सिंह से बात की गई तो उन्होने कहा इसमे फर्जी कुछ भी नही है। हाईस्कूल की परीक्षा में जन्मतिथि गलत हो गई थी, उसमें सुधार के लिये प्रार्थना पत्र दिया गया है। उन्होने कहा सुशील कुमार सिंह बेरोजगार हैं और इसी प्रकार की शिकायतें करके धन उगाही करना चाहते हैं। इसमें प्रधानी चुनाव की रंजिश भी एक कारण है। उन्होने कहा मामला हाईकोर्ट और लोकायुक्त के यहां लम्बित है तब तक कोई कार्यवाही नही हो सकती। रामसनेही की नियुक्ति को जायज ठहराते हुये प्रबंधक ने कहा यह मामला उनके पिता के कार्यकाल का है और वे कोई गलत काम करते ही नही थे।
डीआईओएस ने क्या कहा
कई दिनों के प्रयास के बाद इस मामले में डीआईओएस से बात हुई, उन्होने भी प्रबंधक की तरह दावे के साथ कहा इसमें फर्जी कुठ है ही नहीं, गलती सिर्फ इतनी है कि रामसनेही ने हाईस्कूल दोबारा कर लिया। रही बात जन्मतिथि की तो यह बोर्ड की गलती से हुआ है, सुधारने के लिये रामसनेही ने खुद प्रार्थना पत्र दे रखा है। तथ्यों को छिपाकर और विभागीय अधिकारियों को गुमराह कर हासिल की गई प्रोन्नति के बारे में पूछा गया तो वे दूसरी बातें करने लगे। उन्होने कहा मृतक आश्रित का मामला है। रामसनेही की नौकरी कोई नही ले सकता। वह कुछ भी नही पढ़ा होता तो भी अनुचर के लिये पात्र होता।
हालांकि सुधार की अवधि क्या है इसकी शर्ते क्या है इन सब बातों का किसी को ध्यान नही है। सभी का दावा है इस मामले में फर्जी कुछ भी नही है। आरोपी भी सरो आरोपों को पहले ही निराधार बता चुका है। सवाल ये है कि तथ्यों को छिपाकर लिये गये प्रमोशन पर क्या विभागीय अधिकारी भी अपनी सहमति की मोहर लगा देंगे ? क्या एक ही व्यक्ति सम्पूर्ण विषयों से एक ही बोर्ड से एक ही परीक्षा उत्तीर्ण कर सकता है ? क्या एक ही व्यक्ति की अलग अलग अंक पत्रों में अलग अलग जन्मतिथि हो सकती है ?रामसनेही यादव को गलती का पता चला तो सुधार की प्रक्रिया कई वर्षों बाद क्यों शुरू हुई ? इन सब सवालों के जवाब के लिये हमें इंतजार करना होगा। फिलहाल जांच अधिकारी मिलकर कूटरचना पर परदा डालने का प्रयास कर रहे हैं जिससे रामसनेही को अभयदान दिया जा सके।